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🌾 देसी हिंदी कहानी: गाँव की पराई औरत का राज़


गाँव की लड़की खेत में जाती हुई – देसी हिंदी कहानी

बिहार के एक छोटे से गाँव की यह देसी हिंदी कहानी है। गाँव की गलियाँ कच्ची थीं, घर मिट्टी के बने हुए, और चारों ओर खेतों में फैली हरियाली। सुबह के समय जब मुर्गे की बांग सुनाई देती, औरतें कुएँ पर पानी भरने निकलतीं, बच्चे गली में खेलते और मर्द खेत की ओर निकल जाते। यही गाँव की रोज़मर्रा की ज़िंदगी थी।

इसी गाँव में रहती थी सुनीता। उम्र लगभग पच्चीस साल, चेहरा भोला–भाला, लेकिन आँखों में एक अजीब सी उदासी। उसकी शादी को तीन साल हो चुके थे। उसका पति, रमेश, शहर में नौकरी करता था और साल में सिर्फ़ दो–तीन बार ही गाँव आता। शादी के शुरुआती दिनों में सुनीता ने सोचा था कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा, लेकिन धीरे–धीरे उसका अकेलापन गहराता चला गया।

सुनीता का दिन खेत–खलिहान और घर के कामों में बीतता। लेकिन शाम होते ही जब सूरज ढलता, तो उसका दिल और भारी हो जाता। अक्सर रात को वह छत पर बैठकर चाँद को निहारती और सोचती —
“क्या यही मेरी ज़िंदगी है? क्या मैं हमेशा यूँ ही अकेली रहूँगी? अगर पति पास होता तो शायद यह तन्हाई महसूस न होती।”

पहली मुलाक़ात

गाँव में ही एक नौजवान था — अर्जुन। लंबा कद, गहरी आँखें और मेहनती शरीर। वह अपने पिता के साथ खेतों में काम करता था और गाँव का हर किसी का चहेता था।

एक दिन जब सुनीता कुएँ से पानी भर रही थी, तभी अर्जुन वहाँ आ पहुँचा। उसने मुस्कुराकर कहा,
“बहनजी, बाल्टी भारी है, मैं मदद कर दूँ?”

सुनीता हल्की सी हँसी रोकते हुए बोली,
“नहीं… मैं कर लूँगी। आप अपने काम पर जाइए।”

पर उस दिन के बाद अर्जुन जब भी सुनीता को देखता, उसकी नज़रें थोड़ी देर तक टिक जातीं। और सुनीता के दिल में भी एक हलचल होने लगी थी।

धीरे–धीरे बढ़ती नज़दीकियाँ

अगले कुछ हफ़्तों में, उनकी मुलाक़ातें बढ़ने लगीं। कभी खेत की पगडंडी पर, कभी गाँव के तालाब के किनारे, तो कभी शाम के वक़्त जब बाकी औरतें घर लौट जातीं।

अर्जुन अक्सर बातें छेड़ता —
“आप अकेली रहती हैं… ऊब तो नहीं जाती?”

सुनीता मुस्कुराकर कहती,
“अब आदत हो गई है।”
लेकिन उसके चेहरे पर लिखी तन्हाई को अर्जुन पढ़ लेता।

धीरे–धीरे सुनीता को महसूस होने लगा कि अर्जुन से बातें करके उसका दिल हल्का हो जाता है। दोनों घंटों तक हँसते–बोलते, गाँव की बातें करते, और कभी–कभी सपनों की दुनिया में खो जाते।

गाँव की फुसफुसाहटें

गाँव छोटा होता है, और छोटी–छोटी बातें भी जल्दी फैल जाती हैं। सुनीता और अर्जुन यह जानते थे। इसलिए वे बहुत संभलकर रहते।
गाँव के बुज़ुर्ग अगर कहीं दोनों को एक साथ देख लेते, तो लोग ताने कसने लगते। इसलिए वे अक्सर खेत की झाड़ियों के पीछे या पगडंडी पर मिलते, जहाँ लोग कम आते–जाते थे।

एक दिन अर्जुन ने हिम्मत करके कहा,
“सुनीता दीदी… मैं जानता हूँ कि ये रिश्ता आसान नहीं है। लेकिन जब भी आपको देखता हूँ, लगता है कि आपके बिना मेरी दुनिया अधूरी है।”

सुनीता का दिल धड़क उठा। उसने तुरंत जवाब तो नहीं दिया, पर उसकी आँखें बहुत कुछ कह गईं।

मेले की रात

गाँव में सालाना मेला लगा। ढोल–नगाड़ों की आवाज़, झूले, मिठाइयों की खुशबू — पूरा गाँव रंगीन हो उठा।
सुनीता भी सखियों के साथ मेले में गई। अचानक भीड़ में उसकी नज़र अर्जुन पर पड़ी। उनकी आँखें मिलीं, और पल भर के लिए सब कुछ थम गया।

अर्जुन धीरे से पास आकर बोला,
“आज आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं।”

सुनीता शरमा गई और जल्दी से नज़रें झुका लीं। उसके गाल लाल हो उठे। यही वह पल था जब सुनीता को एहसास हुआ कि उसका दिल अब रमेश का नहीं, बल्कि अर्जुन का हो चुका है।

गुप्त रिश्ता

उस रात सुनीता को नींद नहीं आई। वह बार–बार वही लम्हा याद कर रही थी। उसके मन में डर भी था — “अगर किसी को पता चल गया तो? गाँव वाले क्या कहेंगे?” — लेकिन दिल की चाहत और भी प्रबल हो चुकी थी।

धीरे–धीरे उनका रिश्ता गुप्त रूप से पनपने लगा।
सुनीता जब खेत में घास काटने जाती, तो अर्जुन चुपके से पास आ जाता। दोनों मिलकर बातें करते, हँसते, और कभी–कभी चुपचाप एक–दूसरे को देखते रहते।

अर्जुन कहता,
“काश, यह दुनिया हमें समझ पाती।”
और सुनीता हल्की आवाज़ में जवाब देती,
“काश, हम हमेशा ऐसे ही रह पाते।”

संघर्ष और चाहत

सुनीता जानती थी कि समाज इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेगा। लेकिन अर्जुन के बिना अब उसका दिल खाली महसूस करता।
रात को जब वह पति की तस्वीर देखती, तो उसे अपराधबोध होता। लेकिन जैसे ही सुबह अर्जुन की मुस्कान सामने आती, उसका दिल फिर से खिल उठता।

यह रिश्ता अधूरा था, मगर सुनीता के लिए यही उसकी ज़िंदगी की सबसे हसीन हक़ीक़त थी।

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